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द डेथ

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



अप्रत्याशित परिवर्तन, हानि, विफलता, मृत्यु, दुर्भाग्य, अंत, परिवर्तन, परिवर्तन, संक्रमण

यह कार्ड एक 'यस' सकारात्मक कार्ड है। मृत्यु की बात कोई नहीं करना चाहता। मृत्यु से सभी डरते हैं। लेकिन मृत्यु यह एक शाश्वत सत्य है। इसके अधीन तो देवी देवताओंको भी होना पडा जब उन्होने मनुष्य अवतार धारण किए। इस कार्ड से अभी डरना नहीं चाहिए। क्योंकि इसके पीछे छुपी है सत्यवान सावित्री की कथा। जिससे हमे प्रेरणा मिलती है कि हम अपने जीवन में, ताकत के साथ नकारात्मक शक्तियोंसे लड सकते हैं और उसमें कामयाब भी हो सकते हैं।

आपको देखना पड सकता है, अप्रत्याशित परिवर्तन। हानि, विफलता, मृत्यु, दुर्भाग्य, अंत.... अब आप सोचेंगे इसमें पोजिटिव क्या है? सकारात्मक्ता यह है कि पहले इन घटनाओंसे हम अंजान थे। अब हमें इसके बारे में जानकारी है। कब हानी होगी कब हमारा नुकसान होगा इसके बारे में हमें पहले से जानकारी होगी। उदाहरणार्थ, अगर आपका एक्सीडंट होनेवाला है तो होकर ही रहेगा। किंतु पहले से पता है तो आप सतर्क रहेंगे और केवल खरोच आएगी।

दुर्भाग्य को ज्योतिष शास्त्र में 'साडेसाती' कहते हैं। जब आपको मालूम होता है कि साडेसाती चल रही है तब आप अपने आप से, या किसी भी काम में अपेक्षाएँ नहीं रखते। बिजनस में कमी आई तो उसका भी कारण आपको मालूम होता है। अब जरूरत से ज्यादा ना हम उछलते कूदते है, या नाराज भी नहीं होते। हमें जानकारी होती है कि अमुक काम बिगडनेवाला था, सो बिगड गया।

रही मृत्यु की बात; तो हो सकता है की नजदीक के कोई रिश्तेदार, फ्रेंड्स सर्कल में, या अडोस पडोस में किसी के मृत्यु की खबर आएगी। डरिए नहीं ना इतने जल्दी आप खुद मरनेवाले है ना आपके घर में कोई मृत्यु होगी।

मृत्यु सही मायने में आत्मा का परिवर्तन एवं संक्रमण होता है। आत्मा इस दुनिया को छोडकर दूसरी दुनिया में चली जाती है। जिसे फोर्थ डायमेंशन कहते हैं।

रिवर्स भविष्य कथन



गतिहीनता, धीमी गति से परिवर्तन, छल, मृत्यु, ठहराव, परिवर्तन का प्रतिरोध, व्यक्तिगत परिवर्तन, आंतरिक शुद्धिकरण

चलिए गम्भीर चेहरे के उपर का पसीना पोछ दीजिए। दिल की धडकन बढ गई है उसे भी कंट्रोल कीजिए।

आपको महसूस होगा हर काम में गतिहीनता। अब धीमी गति से परिवर्तन आएगा। आपके साथ छल कपट होने की सम्भावना है। आप्त इष्ट के मृत्यु के कारण एक ठहराव आएगा। आपके जीवन में परिवर्तन का प्रतिरोध होगा। किंतु सहस्यमई तरिके से व्यक्तिगत परिवर्तन होगा। आपके मन की दुख सहने की ताकत बढेगी। आप शांत हो जाओगे। आपका आंतरिक शुद्धिकरण भी होगा। लोगों के प्रति की ईर्ष्या, द्वेष, गुस्सा सब कुछ शांत हो जाएगा। मृत्यु आपको विरक्ति की तरफ लेकर जाएगा। जिससे आपकी अहंकार पर जीत होगी। वासनाओ पर विजय प्राप्त होगा।

द डेथ


अब दोस्तों हैरान होने के लिए तैयार हो जाईये।

आपके दिमाग में अब तक भृगु ऋषि और मैं, जिसके द्वारा कार्ड प्रस्तुत किए जा रहे हैं, दिए गए चित्रों के बारे में कोई संदेह हो सकते हैं।

अब कृपया इस कार्ड के चित्रों का विस्तार से अध्ययन करें।

युरोपिय टैरो कार्ड, सफेद घोड़े पर एक कंकाल योद्धा, काले पोशाक में दिख रहा है। कंकाल ने अपने बाएं हाथ में एक विपरीत दिशा में फहरनेवाला काला झंडा पकड़ा हुआ है। एक पुरुष का शव जमीन पर पड़ा है। एक महिला घुटनों के बल रो रही है। गाउन पहने एक बूढ़ा आदमी कंकाल की प्रार्थना कर रहा है। एक बच्ची भी घुटनों के बल बैठी है। कंकाल एक डरावनी आकृति हो सकती है लेकिन मृत्यु के देवता नहीं।

यह कुछ और नहीं बल्कि सत्यवान सावित्री की कहानी है।

यम, मृत्यु के देवता होला या हाल्या नामक भैंसे पर सवार हैं। सत्यवान का शव जमीन पर पड़ा है। सावित्री सत्यवान की पत्नी मृत्यु के देवता यम से सत्यवान के जीवन की याचना कर रही है।

एक पीली सफेद आकृति सत्यवान की आत्मा है।यूरोपीय कलाकार ने इस कार्ड में एक बच्चे को शामिल किया है, किंतु यह सत्यवान सावित्री की पौराणिक कहानी है। विस्तृत कहानी।

सावित्री प्रसिद्ध तत्त्‍‌वज्ञानी राजर्षि अश्वपति की एकमात्र कन्या थी। अपने वर की खोज में जाते समय उसने निर्वासित और वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान् को पतिरूप में स्वीकार कर लिया। जब देवर्षि नारद ने उनसे कहा कि सत्यवान की आयु केवल एक वर्ष की ही शेष है तो सावित्री ने बडी दृढता के साथ कहा- जो कुछ होना था सो तो हो चुका। माता-पिता ने भी बहुत समझाया, परन्तु सती अपने धर्म से नहीं डिगी!

सावित्री का सत्यवान् के साथ विवाह हो गया। सत्यवान् बडे धर्मात्मा, माता-पिता के भक्त एवं सुशील थे। सावित्री राजमहल छोडकर जंगल की कुटिया में आ गयी। आते ही उसने सारे वस्त्राभूषणों को त्यागकर सास-ससुर और पति जैसे वल्कल के वस्त्र पहनते थे वैसे ही पहन लिये और अपना सारा समय अपने अन्धे सास-ससुर की सेवा में बिताने लगी। सत्यवान् की मृत्यु का दिन निकट आ पहुँचा।

सत्यवान् अगिन्होत्र के लिये जंगल में लकडियाँ काटने जाया करते थे। आज सत्यवान् के महाप्रयाण का दिन है। सावित्री चिन्तित हो रही है। सत्यवान् कुल्हाड़ी उठाकर जंगल की तरफ लकडियाँ काटने चले। सावित्री ने भी साथ चलने के लिये अत्यन्त आग्रह किया। सत्यवान् की स्वीकृति पाकर और सास-ससुर से आज्ञा लेकर सावित्री भी पति के साथ वन में गयी। सत्यवान लकडियाँ काटने वृक्षपर चढे, परन्तु तुरंत ही उन्हें चक्कर आने लगा और वे कुल्हाडी फेंककर नीचे उतर आये। पति का सिर अपनी गोद में रखकर सावित्री उन्हें अपने आंचल से हवा करने लगी।

थोडी देर में ही उसने भैंसे पर चढे हुए, काले रंग के सुन्दर अंगोंवाले, हाथ में फाँसी की डोरी लिये हुए, सूर्य के समान तेजवाले एक भयंकर देव-पुरुष को देखा। उसने सत्यवान् के शरीर से फाँसी की डोरी में बँधे हुए अँगूठे के बराबर पुरुष को बलपूर्वक खींच लिया। सावित्री ने अत्यन्त व्याकुल होकर आर्त स्वर में पूछा- हे देव! आप कौन हैं और मेरे इन हृदयधन को कहाँ ले जा रहे हैं? उस पुरुष ने उत्तर दिया- हे तपस्विनी! तुम पतिव्रता हो, अत: मैं तुम्हें बताता हूँ कि मैं यम हूँ और आज तुम्हारे पति सत्यवान् की आयु क्षीण हो गयी है, अत: मैं उसे बाँधकर ले जा रहा हूँ। तुम्हारे सतीत्व के तेज के सामने मेरे दूत नहीं आ सके, इसलिये मैं स्वयं आया हूँ। यह कहकर यमराज दक्षिण दिशा की तरफ चल पडे।

सावित्री भी यम के पीछे-पीछे जाने लगी। यम ने बहुत मना किया। सावित्री ने कहा- जहाँ मेरे पतिदेव जाते हैं वहाँ मुझे जाना ही चाहिये। यह सनातन धर्म है। यम बार-बार मना करते रहे, परन्तु सावित्री पीछे-पीछे चलती गयी। उसकी इस दृढ निष्ठा और पातिव्रतधर्म से प्रसन्न होकर यम ने एक-एक करके वररूप में सावित्री के अन्धे सास-ससुर को आँखें दीं, खोया हुआ राज्य दिया, उसके पिता को सौ पुत्र दिये और सावित्री को लौट जाने को कहा। परन्तु सावित्री के प्राण तो यमराज लिये जा रहे थे, वह लौटती कैसे? यमराज ने फिर कहा कि सत्यवान् को छोडकर चाहे जो माँग लो, सावित्री ने कहा-यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे सत्यवान् से सौ पुत्र प्रदान करें। यम ने बिना ही सोचे प्रसन्न मन से तथास्तु कह दिया। वचनबद्ध यमराज आगे बढे। सावित्री ने कहा- मेरे पति को आप लिये जा रहे हैं और मुझे सौ पुत्रों का वर दिये जा रहे हैं। यह कैसे सम्भव है? मैं पति के बिना सुख, स्वर्ग और लक्ष्मी, किसी की भी कामना नहीं करती। बिना पति मैं जिना भी नहीं चाहती।

वचनबद्ध यमराज ने सत्यवान् के सूक्ष्म शरीर को पाशमुक्त करके सावित्री को लौटा दिया और सत्यवान् को चार सौ वर्ष की नवीन आयु प्रदान की।






प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

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